कलाकार की दृष्टि में व्यवसायिकता के मायने


एक कलाकार के लिए व्यवसायिकता के मायने क्या हो सकते हैं अक्सर हिंदी सिनेमा में सामाजिक चरित्रों को निभाने वाले अभिनेता सिर्फ निर्देशक की दृष्टि से चरित्रों को समझते हैं जिस सामाजिक परिवेश में उस चरित्र का निर्माण हुआ है उसे जीने का प्रयास नहीं करते और अगर करते भी हैं तो अपने व्यवहारिक जीवन में कितने सामाजिक आन्दोलनों में उतनी ही तत्परता से सक्रिय रहते हैं...आखिर एक कलाकार का उद्देश्य केवल पर्दे पर इस तरह के चरित्रों को उतार देना है...एक कलाकार की दृष्टि इस तरह के सिनेमा को लेकर क्या होनी चाहिए .....व्यवसायिकता की आड़ में एक अभिनेता अपने सामाजिक दायित्व बोध से अलग किस प्रकार हो सकता है ....... 
एक अभिनेता होने के मायने सिर्फ पात्र को जी लेने तक सिमित नहीं है उस पात्र की पृष्ठभूमि को हम कितना समझ पाए और उसके जीवन के आन्दोलन से किस प्रकार जुड़ पाए यह महत्वपूर्ण है..सामाजिक मुद्दों पर केन्द्रित सिनेमा में जो अभिनेता चरित्रों को आत्मसात करते हैं वो बस सवादों तक सिमित हो जाते हैं क्षण भर के लिए उस पात्र को जीते हैं परन्तु जिस सामाजिक परिवेश में उस पात्र का जन्म होता है क्या उसे जीने का प्रयास करते हैं.....सामाजिक आन्दोलनों पर आधारित फिल्मों के अभिनेताओं की समीक्षा की जाए तो बहुत कम अभिनेता हुए हैं जिन्होंने इन सामाजिक परिवेश की पीड़ा को पर्दे से उतरकर जीवन में महसूस किया हो...एक कलाकार अगर कला को केवल व्यवसायिक दृष्टि से देखेगा तो वो उन चरित्रों के प्रति न्याय कहाँ कर पायेगा जिनका जीवन संघर्ष के धरातल पर तपिश को महसूस करते हुए बीता है ......इप्टा से आये बहुत से अभिनेता आज फ़िल्म उद्योग में स्थापित हैं, जिन्होंने अपने सामाजिक दायित्व को नज़रंदाज़ नहीं किया वह अपने चरित्रों को न केवल पर्दे पर जीवंत करते हैं बल्कि अपने व्यवहारिक जीवन में भी अपनी सामाजिक भूमिका का निर्वाह करते हैं....आखिर  एक कलाकार के लिए व्यवसायिकता के मायने क्या हो सकते हैं सामाजिक दायित्व बोध से अपने को अलग करके किस तरह की कला को संप्रेषित करना चाहते हैं.....

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