लोक एवं पारंपरिक नाट्य रूपों पर महत्वपूर्ण पुस्तक

'उत्तर और दक्षिण भारत का लोक रंगमंच' पुस्तक मेरा पहला मौलिक प्रयास है जो जल्दी ही आप सभी तक पहुँचने वाली है । इस पुस्तक के मध्यम से भारत के लोकनाट्य रूपों की सांस्कृतिक, विविधतापूर्ण चेतना को समझने का प्रयास किया गया है। लोक रंगमंच में एक ऐसी शक्ति है जिन्होंने हमारे आवेगों को जाग्रत कर हमे एक सूत्र में बाँधा है, उत्तर भारत हो या दक्षिण भारत प्रस्तुति-प्रकिया को छोड़ दोनों में एक आंतरिक सांस्कृतिक एक सूत्रता है।भारत के सभी लोकनाट्य एक भीतरी एकसूत्रता से बंधे हुए हैं जिन्हें भारतीय जन रूचियों की गहरी पहचान है, उत्तर हो या दक्षिण मानव का मानव के प्रति सहज प्रेम इन लोकनाट्यों का हमेशा से साध्य रहा है। देव-दानवों की कथा के माध्यम से सत्यम,शिवम,सुन्दरम के आदर्श को सम्पूर्ण भारत में विविधतापूर्ण प्रस्तुति-प्रकिया के जरिये आज भी स्थापित किया जा रहा है । हालाँकि बाज़ार और सिनेमा के प्रभाव से उत्तर और दक्षिण भारत के लोकनाट्य भी आछुते नहीं रहे हैं।मूल रूप से इस पुस्तक में दो प्रदेशों के लोकनाट्य रूपों रामलीला और यक्षगान की तुलना के जरिये उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोकनाट्यों की तुलना के साथ विश्लेष्णात्मक अध्ययन किया गया है


- नरेंद्र कुमार भारती 

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