मत टकरा मुझसे इस कदर
मन की मैं शीशा  नहीं
पर दरार तो जरुर पड़ेगी
तेरे न होने का गम काफी नहीं
की तू बह निकली मेरी आँखों से
केसे हो जाऊ सूफी
कहाँ है तेरी रूह
जितनी बार पहुंचा तुझ तक
तेरी परछाई और दूर होती गई
वह कोण सा जवाब है
जो तू खोजती रही मुझमे
मेरे जीवन का एक पन्ना भी नहीं मिला
जिसे पढ़ लेती तुम
तेरा नाम याद भी आया
तो साँसे अटकती है
याद है गली की वो दिवार
वो तेरा चाट पर आना
पलके झुकाना
तेरी सफ़ेद चुनर मैं वो चंदा
तेरे माथे पर वो ठहरा  तेरा
वो सन्नाटा जो गलियों मैं था
क्यों बस गया मेरे भीतर
तू क्यों नहीं मिल गई मुझमे
क्यों वो रात ठहरी नहीं
एक मुलाकात की ख्वाहिश
तारीखों के साथ बदलती रही
किसको कसूरवार मनु
उसको जिसने तुझे बनया
अपने भाग्य को
जिसने मेत्रे सर पर वर किया
इन आँखों को
आज भी तेरा इंतज़ार है
अज भी खड़ा हु
उस गली के नुक्कड़ पर
वो छत आज भी है
वो चाँद वो तारे आज भी है
जहाँ मिले थवे हम कभी
वो मंदिर वो मस्जिद आज भी है
वो इबादत आज भी है
मेरी आँखों मैं तेरा
चेहरा आज भी है .........

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