एक सोच उतर आई
उन भीगी आँखों मैं
एक शक्ति समां गई
उन बंधे हाथों में
आज पत्तों ने खूब कही
अपने अलगाव की दास्तान
फिर कोई अप्सरा
उतरी जमीं पर गगरी भरने
फिर वो मोती
पत्तों से धुलक गया
फिर वो दुल्हन
अपनी चूड़ियों को घुमा रही
फिर वो आइना
चाँद दिखा रहा
फिर वह सूरज
किसी और में शरमा रहा

शाम ने समेटना सुरु किया
गजलों से रूमानियत को
फेल गया फलक में
आँखों का वह तारा
चलती गई वह नाव
जहाँ नदी समाप्त हुई
बदलो ने फिर रोद्र रूप थमा
बरस गए आस्मां से तारे
उस झोपड़ी से ज्योति पुंज निकला
फिर सींचा किसी किसान ने
इच्छाओं की धरती को
हवा खेलती हुई
वृक्षों को झुकाती हुई
खेतो को सहलाती हुई
सरोवर में नहाती हुई
उस बच्चे के पलक को हिला गई
उस माँ के अंचल में समां गई

पुष्प पुलकित हो नभ में
मुस्कान वो फेला गई
जो चुप थी
वो उठी और समां गई 

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