नाटक :आत्महत्या

नाटक :आत्महत्या

(भीतर से प्रकाश उभरता हुआ ..एक व्यक्ति दर्शकों की तरफ चुपचाप देख रहा है ..कुछ देर शांत रहता है ..और फिर दर्शक मैं से कुछ एक से बात करता है )

व्यक्ति : आप सोच रहे होंगे की मैं आपको ऐसे क्यों देख रहा हु ..आप सब तो यहाँ नाटक  देखने आये  है ..कहानी ढूंढ  रहे होंगे ..हो सकता है कुछ अपने रोज़ की दिनचर्या से उब कुछ नया होने की चाह  मैं यहाँ आये  होंगे ..कुछ प्रेम कहानी सोच आये  होंगे ..कुछ ऐसे भी होंगे जो ठहाका मरने की लालसा मैं आये  होंगे ..कितना विचित्र होता है यहाँ खड़े होकर सबकी इच्छाओं को एकसाथ पूरा करना ..खेर छोडिये  मुझे जो काम सोपा गया है वह करता हु ..कभी मैं आप की जगह पर बेठ कर सुनता था ..आज थोडा साहस  दिखा कर यहाँ बोल रहा हु ..मैं आपको जो दिखाना चाहता हो वो सिर्फ कहानी नहीं एक दिशा  है .............
(कमरे का दृश्य एक व्यक्ति पेपर मेट को घुमा रहा है कुर्सी पर बता कुछ सोच रहा है )

व्यक्ति : "बोल की लब आज़ाद है तेरे बोल की जुबान अब भी तेरी है " किसी शायर  की यह पंक्ति कितना जोश भर देती है .पर मुझको तो हमेशा भीतर तक  कचोट देती है ..अपनी डायरी के पन्नो को भरते भरते  थक गया ..जब भी अपनी कविता किसी मित्र को  या सभा मैं सुनाता हु या कोशिश करता हु तो बेचेनी सी हो जाती है ..भय होता है की कहीं किसी को चोट न लगे ..कहीं कोई विरोध  मुझ पर पत्थर की तरह न लगे ..पिछली बार जो उस कवी के साथ हुआ वो मुझ पर न बीत जाये ..फिर भी लिखता जा रहा हु ..मेरी मृत्यु के पश्चात शायद  मेरी डायरी किसी की आँखों मैं पड़ जाये और मैं क्या चाहता था ?क्या मेने जिया उसे लोग जाने 
(भीतर  से आवाज़ आती है )

खाना ठंडा हो रहा है बाबु  साहब 

व्यक्ति : ठीक है आता हु 

नोकर :बाबु साहब आपके लिए पत्र आया है 

व्यक्ति : हाँ तो ले  आओ ,(मुझे कोन  पत्र लिखने लगा इतने साल संबंधों की डोर क्या होती है समझने का मोका ही नहीं मिला ,और किस्मत ने मुझे वहां बसाया जहाँ आपकी आवाज़ केवल आप ही सुन सकते है ...(चिठी पढता है फिर कुछ सोचने लगता है )

नोकर : क्या हुआ बाबु साहब ? कोई बुरी खबर है क्या ?

व्यक्ति :बुरी खबर क्या होगी ..
एक डॉक्टर और लेखक के जीवन मैं घटनाएं मौसम की तरह आती और जाती है ..दर्द से वो इस तरह मिल चूका होता है की कुछ अच्छा होना क्या होता है उसे याद ही नहीं रहता 
अरे तुम्हे याद है मेने एक पेशेंट का इलाज़ किया था जिसके पेट मैं दर्द था ..जो ठीक भी हो गया था ..

नोकर : हाँ बाबु साहब ..जिन्होंने आपको फ़ोन भी किया था धन्यवाद के लिए ......क्या हुआ ?

व्यक्ति :उसने आत्महत्या कर ली

नोकर : ( चोंक जाता है वह चुपचाप उस दिवार पर टंगे शीशे को देखते रहता है )

व्यक्ति : मैं साय्ड जनता हू की उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा

नोकर : अभी भी शीशे की तरफ देख रहा है और डॉक्टर को सुन रहा है

व्यक्ति : शायद  उसके पास वो पन्ने नहीं थे जिस पर मैं अपनी कहानी लिखता हू उसने जरुरत नहीं समझी और पहले प्रयास मैं ही सुख को पा गया
(व्यक्ति अपना मुह निचे कर लेता है और कहता है )

व्यक्ति : में तो अपने प्रयासों को गिन भी नहीं सकता अब ......(स्टेज पर अँधेरा छाता है और सूत्रधार का प्रवेश
)

सूत्रधार :में चाहता तो कई अंकों को गुट कर एक फ़ाइल पकड़ा देता और आपको स्वतंत्र चोद देता की जो दृश्य आपके सबसे अधिक पास लगे उसे अपने साथ ले जाइए ..पर मेने आपको एक दृश्य दिया है जिसमे यहाँ बेठे हर व्यक्ति के लिए एक दरवाज़ा है ..आप चाहे तो उसमे से गुजार कर बहुत दिशाओं मैं जा सकते है ...कुछ सिर्फ खटखटा कर वापस आना चाहेंगे ...यह घर जिसका यह कमरा है आप भी उसमे रह सकते है और महसूस कर सकते है जो उस व्यक्ति ने महसूस किया उस मरीज ने महसूस किया होगा ...

खेर आपके लिए यह यहीं छोड़  देता हू की जिंदगी की राह कब  किस मोड पर आपसे क्या मांगती है हम नहीं जानते (पर्दा गिरता है )

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धन्यवाद