inki aankhon main





इन आँखों से पूछो की नया साल क्या है
इसने पूछो  की इनके हाथो मैं क्या है
सपने जो इनके पलकों पर जम गए है
हर बरसात मैं बुँदे वो भी बहा ले जाती है
इसी ढेर के किनारे इसका मकान होगा
मकान या यु कहे की जर्जर दास्तान होगी

न जाने कितने सायर कवियों
की संवेदनाओं का विषय रहा
समाज कबसे न जाने सोच रहा
अच्छा कपड़ा अच्छा खाना
इन्होने बस सुना भर है
हर नए साल इनके पास
अगले १२ महीनो दर्द होता है
फर्क इतना है किसी दिन
ज्यादा है तो कभी बहुत ज्यादा
इनकी हाथों मैं लकीरों को देखो
धुल ने बदनसीबी की एक नयी रेखा बना दी है ...

कोन  कहता है इश्वर है
अगर है तो इससे बात करे
सूरज की रौशनी झोपडी मैं सबसे पहले आती है
तभी तो इनकी आँखों मैं सूखापन है
पिचली बार से अगली बार तक
कोन कितना दर्द देगा यही बस यह जानते है ...

हो सके तो खुशियों का एक लम्हा तोड़
इनके घर की तरफ फेक देना ...
इनके दर्द का कांच तो टूटेगा ...

1 टिप्पणी:

धन्यवाद