मनौत
बिहार के मुसहर जाति के लोगों में मनौत खेलने की परंपरा है। इस समुदाय के लोगों अपने ईश्वर का ध्यान करते हैं। स्त्री तथा पुरुषों का कोरस अलग होता है। परंतु गए जाने वाले गीतों के बीच अद्भुत तालमेल मिलता है। पखावज तथा झालर के संगीत पर भक्ति गीत गए जाते हैं। कुछ ही समय पश्चात उनके ईश्वर चुनिन्दा भगतों के भीतर ईश्वर समाहित हो जाते हैं। ईश्वर के साथ लोगों का संवाद प्रारम्भ होता है। इस संवाद की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ ईश्वर के प्रति भय नहीं है। ईश्वर के साथ पारिवारिक सदस्य की तरह संवाद चलता है। उसके होने की व्यर्थता पर भी व्यंग्य कसा जाता है कि अगर तू है तो हमें कष्ट क्यों है। इस प्रकार लोग ईश्वर को डांटते भी है शिकायत भी कराते हैं। ईश्वर का उन लोगों के प्रति सम्बोधन "हे सखी" आश्चर्य में डालता है। दीना भद्री की कथा का गायन भी होता है। इस परंपरा की अपनी सामाजिक महत्वता है। अद्भुत !!!!!!!!!
बिहार के मुसहर जाति के लोगों में मनौत खेलने की परंपरा है। इस समुदाय के लोगों अपने ईश्वर का ध्यान करते हैं। स्त्री तथा पुरुषों का कोरस अलग होता है। परंतु गए जाने वाले गीतों के बीच अद्भुत तालमेल मिलता है। पखावज तथा झालर के संगीत पर भक्ति गीत गए जाते हैं। कुछ ही समय पश्चात उनके ईश्वर चुनिन्दा भगतों के भीतर ईश्वर समाहित हो जाते हैं। ईश्वर के साथ लोगों का संवाद प्रारम्भ होता है। इस संवाद की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ ईश्वर के प्रति भय नहीं है। ईश्वर के साथ पारिवारिक सदस्य की तरह संवाद चलता है। उसके होने की व्यर्थता पर भी व्यंग्य कसा जाता है कि अगर तू है तो हमें कष्ट क्यों है। इस प्रकार लोग ईश्वर को डांटते भी है शिकायत भी कराते हैं। ईश्वर का उन लोगों के प्रति सम्बोधन "हे सखी" आश्चर्य में डालता है। दीना भद्री की कथा का गायन भी होता है। इस परंपरा की अपनी सामाजिक महत्वता है। अद्भुत !!!!!!!!!
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