Dr. Om Prakash Bharti
बिहार के सहरसा जिले के अत्यंत पिछड़े गाँव मानखाही में जन्मे डॉ ओमप्रकाश भारती का लोक संस्कृति के प्रति रुझान बचपन से ही रहा। बिहार की लोक कलाओं को वो बचपन से ही देखते सुनते आ रहे थे उस वक्त उपजा बीज धीरे धीरे विकसित हुआ। अपने विद्यार्थी जीवन में ही इन्होने देश की कई लोक कलाओं पर लेख के माध्यम से अपने विचार रखे। बिहार के पारंपरिक नाट्य उनके 18 वर्षों के गहन अध्ययन का ही परिणाम है। उनके सपनों को पंख 1997 में संगीत नाटक अकादमी ने दिया जब उन्होने prograame officer के पद पर कार्यभार संभाला। यायावरी प्रवृत्ति होने के कारण उन्होने देश के लगभग सभी राज्यों की लोक कलाओं को जाना समझा तथा वर्षों से संस्कृति के संरक्षकों/ लोककलाकारों को उनका अधिकार दिलाया। वो सम्मान जो उन्हे बहुत पहले मिल जाना चाहिए था कहा भी गया है हीरे की परख जौहरी को होती है। जम्मू कश्मीर का भांड पाथेर हो या फिर केरल का कूडियाट्टम और यक्षगान, गुजरात का भवई हो या फिर असम का अंकीया नाट देश के सभी दिशाओं से लोककलाकारों को उन्होने तराशा । शायद इसका ही परिणाम था कि लोक कलाओं के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ा। वो जहां गए लोककलाओं के प्रति लोगों में जिज्ञासा को बढ़ावा दिया एक शिक्षक के दायित्व को निभाते हुए ऐसे शोधार्थियों को लोककलाओं की दिशा में शोध के लिए जागृत किया। उनके निर्देशन में कई कलाओं पर शोध पूर्ण हुए तथा जारी है।
पूर्वोत्तर भारत में जवाहर लाल नेहरू नृत्य केंद्र के निदेशक के पद पर जब वो आए स्थिति चिंतनीय थी पर न केवल भारती जी ने उस स्थिति से केंद्र को उभारा बल्कि युवाओं को प्रोत्साहित भी किया कि वह अपनी लोक कलाओं को जाने समझे। शिलोंग में कार्यकाल के दौरान उन्हे पूर्वोत्तर के कई राज्यों के कलारूपों के संरक्षण का बीड़ा उठाया। अपनी धुन पर अकेले थे परंतु पक्के थे। पूर्वोत्तर भारत की कई कलाओं को न केवल पुनर्जीवित किया बल्कि उनको राष्ट्रीय पहचान भी दिलाई।
एक कलाकार एक अध्येता के साथ एक लेखक के रूप में भी उनकी अपनी विशिष्ट पहचान है । बिहार के पारंपरिक नाट्य, मेथलिक लोकनाट्य, नदियां गाती है, पूर्वोत्तर के लोकनाट्य, लोकायन (लोककला रूपों प समग्र), बालन (सिक्किम का पारंपरिक नाट्य), अंकीया नाट, आदि उनके द्वारा लोककलाओं को समर्पित पुस्तके हैं जिनमे से बिहार के पारंपरिक नाट्य को राष्ट्रपति द्वारा इन्दिरा गांधी राजभाषा सम्मान से भी सम्मानित किया गया।
लोककला विश्वकोश के संपादक तथा सामाजिक विज्ञान के सह संपादक के रूप में भी उनका योगदान अतुलनीय है।
डॉ ओमप्रकाश भारती को कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सम्मनों से पुरस्कृत किया गया जिनमे
Indira Gandhi Rajbhasha Award – 2007-2008.
Bilasa Loksahitya Samman- 2007
.Purvottar Hindi Akademi Samman-2009
वर्तमान में नाट्यकला एवं फिल्म अध्ययन विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं ।
पूर्वोत्तर भारत में जवाहर लाल नेहरू नृत्य केंद्र के निदेशक के पद पर जब वो आए स्थिति चिंतनीय थी पर न केवल भारती जी ने उस स्थिति से केंद्र को उभारा बल्कि युवाओं को प्रोत्साहित भी किया कि वह अपनी लोक कलाओं को जाने समझे। शिलोंग में कार्यकाल के दौरान उन्हे पूर्वोत्तर के कई राज्यों के कलारूपों के संरक्षण का बीड़ा उठाया। अपनी धुन पर अकेले थे परंतु पक्के थे। पूर्वोत्तर भारत की कई कलाओं को न केवल पुनर्जीवित किया बल्कि उनको राष्ट्रीय पहचान भी दिलाई।
एक कलाकार एक अध्येता के साथ एक लेखक के रूप में भी उनकी अपनी विशिष्ट पहचान है । बिहार के पारंपरिक नाट्य, मेथलिक लोकनाट्य, नदियां गाती है, पूर्वोत्तर के लोकनाट्य, लोकायन (लोककला रूपों प समग्र), बालन (सिक्किम का पारंपरिक नाट्य), अंकीया नाट, आदि उनके द्वारा लोककलाओं को समर्पित पुस्तके हैं जिनमे से बिहार के पारंपरिक नाट्य को राष्ट्रपति द्वारा इन्दिरा गांधी राजभाषा सम्मान से भी सम्मानित किया गया।
लोककला विश्वकोश के संपादक तथा सामाजिक विज्ञान के सह संपादक के रूप में भी उनका योगदान अतुलनीय है।
डॉ ओमप्रकाश भारती को कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सम्मनों से पुरस्कृत किया गया जिनमे
Indira Gandhi Rajbhasha Award – 2007-2008.
Bilasa Loksahitya Samman- 2007
.Purvottar Hindi Akademi Samman-2009
वर्तमान में नाट्यकला एवं फिल्म अध्ययन विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं ।
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