"रात "
"रात "
इस रात वो बात फिर से न हो
की फिर कहीं कोई सुबह ठहर जाए
इस रात वो आइना न देखा हो किसी ने
की फिर किसी का चेहरा उसमे यूँ ही छुट जाये
इस रात धीमी लेम्प पोस्ट की रौशनी
फिर किसी खम्बे पर न चढ़ जाये
इस रात कोई अपनी ही आगोश मैं न सोये
की सुबह तक तकिया सब बयां कर दे
इस रात वो बुँदे न बरसे आसमान से
की फिर किसी पत्ते पर सदियाँ बन ठहर जाये
की इस रात किसी बूढी माँ की आँखे न न हो बंद
की कही उस पार वो बच्चा माँ के आँचल को तरस जाये
इस रात न दिखे कोई ऐसा सपना
की फिर कोई चाहत कांच की तरह बिखर जाए
इस रात फिर वह धुंध बढ़ गया
इतना न बढे की मानवता ही ढक जाए
इस रात में कोई नारे न लगे
की कहीं कोई बन्दुक किसी गरीब पर न चली हो
इस रात कोई प्रेस कांफ्रेंस न हो
की फिर किसी वादों का धुंधला आसमान तैयार हो जाये
इस रात बस रात हो
कहीं फिर सुबह कोई बदलाव न लेकर आये
इस रात उस रात जैसी हो जिस रात , रात थी
इस रात वो बात फिर से न हो
की फिर कहीं कोई सुबह ठहर जाए
इस रात वो आइना न देखा हो किसी ने
की फिर किसी का चेहरा उसमे यूँ ही छुट जाये
इस रात धीमी लेम्प पोस्ट की रौशनी
फिर किसी खम्बे पर न चढ़ जाये
इस रात कोई अपनी ही आगोश मैं न सोये
की सुबह तक तकिया सब बयां कर दे
इस रात वो बुँदे न बरसे आसमान से
की फिर किसी पत्ते पर सदियाँ बन ठहर जाये
की इस रात किसी बूढी माँ की आँखे न न हो बंद
की कही उस पार वो बच्चा माँ के आँचल को तरस जाये
इस रात न दिखे कोई ऐसा सपना
की फिर कोई चाहत कांच की तरह बिखर जाए
इस रात फिर वह धुंध बढ़ गया
इतना न बढे की मानवता ही ढक जाए
इस रात में कोई नारे न लगे
की कहीं कोई बन्दुक किसी गरीब पर न चली हो
इस रात कोई प्रेस कांफ्रेंस न हो
की फिर किसी वादों का धुंधला आसमान तैयार हो जाये
इस रात बस रात हो
कहीं फिर सुबह कोई बदलाव न लेकर आये
इस रात उस रात जैसी हो जिस रात , रात थी
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