वो तुम्हारा चेहरा

वो तुम्हारा चेहरा
जो पिछली बार छुट गया था मुलाकात में
कुछ सपने जो कल देखे थे
टूट चुके थे आधी रात में

वो तुम्हारा मुस्कराना
शरमा के पलके झुकाना
गीत कुछ यूँ गुनगुनाना
खुद में लिपट जाती थी तुम
रातो में समां जाती थी तुम

वो रात भी तो तुझ पर लिपटी थी
वो शाम भी तो तेरे ही माथे का सिंदूर थी
वो तारे जो हमेशा माथे पर लगाती तुम
वो जुगनू जो रोशन करता तुम्हे
वो पेड़ को ढक देती थी चांदनी
वो रात जो किसी पत्थर के पीछे छिप जाती थी

धीरे धीरे जब शहर मैं सन्नाटा पसरता था
जब यौवन तुझसे झगड़ता था
जब तुम लेती थी नाम मेरा
पढ़ती थी पैगाम मेरा
जब यादे भी रातों  में घुल जाती थी
तब तुम खुद में मुरझाती थी

देख सावन की रातों में
जब बुँदे तुझे भिगोती थी
जब सखियाँ तुझे समझाती थी
तुम बिलख रोती थी
तब उस उदास भरी रातों में
नाम मेरा तुम लेती थी

यु ही तुम्हारा हो जाना
पलकों को झुका सो जाना
वो छिप जाता चाँद भी तुझमे
समा जाती दुनिया भी तुझमे
एक दुनिया होती फिर तुझमे

तुम हो जाओ खुद में
संसार की अनमोल वस्तु
मेरी इच्छा , चाहत सब
तुझ पर बादल बन बरस जाएँ

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