सीर पर उसके बोझ की गठरी
हाथ उसके हवा मैं लहरते
योवन की देहलीज पर उसकी कमर
नव दुल्हन से उसके पाँव
मुस्कान ठहरती उसके चेहरे पर
ज्यों सावन की फुहार

खेतो मैं बलखाती वेह चल्तुई
धुप उतरती धीरे धीरे
सखियों का संगम होता यहाँ पेर
वो औंधी सुगंध बस जाती मुझमे
चक्की की चक चक चक
कोयल की कू कू कू
पानी की कल कल कल
हवा  की शूऊऊऊऊओ

जीवन जी उठता यहाँ पर
वह  जहाँ जहाँ रखती पाँव अपने
उग  आता नव जीवन वहां ....  

कोई टिप्पणी नहीं:

धन्यवाद