खंडहर
खंडहर
जो तेरा है सच
उसे बाहर निकाल
मुक्त कर उस पिंजरे से
होने दे युद्ध सब्द और अर्थ में
मत सोच
की कोण सा प्रलय आयेगा
कुछ खंडहर टूटेंगे
कुछ अपने रुठेंगे
एक फुल मुरझायेगा
कुछ रास्ते तह्रेंगे
रात से झगड़
एक सुबह उतरेगी
पत्तों पर कुछ देर ठहरेगी
धरती में मिलेगी
किसी कविता में सजेगी
उस सच को पानी में मार
अपने पुरे वेग के साथ
हर चोट पर लहर उठेगी
जो तेरा होगा
सच उस तक पहुँच जायेगा
यह भीतर भय केसा
किस तरह का अपराध बोध
भाव था
दरवाज़ा खोल बहार निकला
तो कलम ने स्याही में डूबा दिया
कुछ पृष्ठों की मांग थी
सो कविता में बसा दिया
तू घबराता क्यों है
भाव ही है
किसी के घर का शीशा नहीं टुटा
पिछली बार की तरह
उस गुबंद में गूंजा नहीं
अरे वही जो रोटी से खेलता है
उसके हाथ पर गोली की तरह लगा
किसी का भला हुआ
तो तू घबराता क्यों है
शब्द ही है न
थोडा भाव के साथ
घुमने चल दिए तो क्या
घर और समाज क्या है
वह जानना तो सिख गए
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