"वो "
उसकी चुनरी से वो धुप छनकर
मुझ पर पड़ती थी
उसने अपने सपनों को काटकर
मेरे सपनों को बुना
उसका स्नेह
इस दुनिया के सागरों से गहरा है
एक बहता दरिया है उसकी ममता
जब भी खुद से डरता हु मैं
तो वो सहस बन मुझ मैं समां जाती
जब भी भर आता मेरी आँखों मैं आंसू
वो चुनर के कतरे से उसे मिटा जाती

उस कंधे पर सर रखने पर
पुरे संसार की मुस्कान ठहर जाती
चाँद तारो से सजा आसमान भी
आ जाता उसके लिए जमीं पर
वो रहना चाहती थी हमेशा यहाँ
की मैं रह सकू सदा यहाँ ...

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