एक दख्त सेहर मैं पड़ा था
एक तुझ पर पड़ा मेरा
एक ख़ामोशी सेहर मैं पसरी थी
एक ख़ामोशी मुझमे पसरी थी
एक नाव नदी मैं फसी थी
एक नाव मेरे भीतर डूबी थी
वेह भी साहिल पर अकेले थे
मैं भी समुन्द्र मैं प्यासा था
एक रात वो भी सिसक के रोये
उस रात मैं भी हंस के रोया
वो अपनी बाहों के लिए रोये
मैं उनकी बाहों के लिए रोया .....
एक तुझ पर पड़ा मेरा
एक ख़ामोशी सेहर मैं पसरी थी
एक ख़ामोशी मुझमे पसरी थी
एक नाव नदी मैं फसी थी
एक नाव मेरे भीतर डूबी थी
वेह भी साहिल पर अकेले थे
मैं भी समुन्द्र मैं प्यासा था
एक रात वो भी सिसक के रोये
उस रात मैं भी हंस के रोया
वो अपनी बाहों के लिए रोये
मैं उनकी बाहों के लिए रोया .....
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