लोक नाट्यः करियाला
Monday, September 26, 2011 8:24:54 AM
लोक नाट्य का बीजारोपण भरत मुनि के पौराणिक मतानुसार
त्रेता युग में सांसारिक लोगों के नीरस एवं दुखी जीवन को देखकर इंद्र आदी
देवताओं ने ब्रह्मा जी के पास जाकर प्रार्थना की कि महाराज हमारे मंनोरंजन
के लिए पांचवां वेद दो क्योकि सत्री और अन्य शूद्र आदी जातियां वेद पढ़ने
के अधिकारी नहीं, उनके मनोरंजन के लिए वेद दो। ब्रह्मा जी ने देवताओं की
याचना स्वीकार की। ऋग्वेद से संवाद, यजुर्वेद से अभीनय, अथर्ववेद से रस,
तथा सामवेद से गान लेकर पंचम वेद लोक नाट्य की स्थापना की। स्थापना के समय
शिव ने तांडव तथा पार्वती नें लास्य नृत्य प्रदान किए और विष्णु भगवान नें
चार नाट्य शैलियों का निर्नाण किया, तब कही जाकर भरत मुनि को यह अधिकार
दिया गया कि वे पंचम वेद, लोक नाट्य का प्रचार सारे संसार में करे। यहीं से
लोक नाट्य परम्परा की शुरूआत मानते हैं।लोक नाट्य परम्परा लोक नाट्य परम्परा में महाराष्ट्र का तमाशा, गुजरात, सौराष्ट्र का भांवी नाट्य, कर्नाटक का यक्ष गान, केरल का कुड्डियाटम, असम का ओज पाली, कश्मीर का भांड-पत्थर, हरियाणा, पंजाब का स्वांग, उत्तर प्रदेश बिहार की नौटंकी तथा रास लीला, बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा का आणिक्य-नाट, मणिपुर का अरब-पाला, राजस्थान का गौरी-ख्याल, गोवा का रनभाल्यम और काला, मध्य प्रदेश का नाच प्रसिद्ध है। हिमाचल लोक रंगशाला की विविधता में देव-दानव संघर्ष, शिव-शक्ति उपासना, राम-कृष्ण लीला, सामाजिक विसंगतियां, तथा एतिहासिक परिवेश ही मूल प्रतिपाद्य के रूप में स्वीकारते हैं। सोलन, शिमला और सिरमौर में करियाला, चम्बा, कुल्लू, किन्नौर में हरणातर, हरण और होरिडं फो, ऊना, सोलन, बिलासपुर में धान्जा, मंडी जनपद का बुढ्ढा, कांगड़ा का भगत आदी लोक नाट्य आज भी अपनी पारम्परिक मौलिकता बनाए हुए हैं।
करियाला का उद्भव करियाला आधुनिक युग की उपज नहीं है अपितु भारतीय लोक नाट्य परम्परा की आदीकालीन लड़ी से सम्बद्ध है। स्मरणीय है कि भाण के स्वप्नवासवदत्ता, प्रत्यञजना का युगन्धरायण, शुद्धारक का मृच्छकटिकम, हर्ष का प्रियदर्शिका रत्नावली, नागानंद, विशाखदत्त के मुद्राराक्षस, भट्ट-नारायण के वेणी-संहार, भवभूति के उत्तर-राम-चरित-मानस, मालती-माधव, महावीर चरितम, और महाकवि कालीदास के शकुंतलम और मल्लिका अग्निमित्रम जैसे संस्कृत नाट्य। करियाला नाट्यों में जनसाधारण की समस्यओं की गहरी छाप मिलती है जो सीधे जन साधारण के हास-परिहास व्यंग्य-विनोद, सुख-दुख और आम लोगों की मनोव्यथा को व्यक्त करने के साथ-साथ श्रम परिहार और मनोरंजन भी प्रस्तुत करते हैं।
करियाला से जुड़ी दंत कथाएंजनश्रुतियों, दंत-कथाओं, किंवदंतियों के आधार पर स्वीकार किया जाता है कि करियाले की शुरूआत 17वीं शताब्दी के आस-पास हुआ माना जाता है। हिमाचल प्रदेश के शिमला और सोलन जनपद में प्रचलित लोक कथाओं के आधार पर पहली दंत कथा के अनुसार शिरगुल तथा क्योंथल के देवता परिहार के मध्य अनबन हुई। क्योथन में उस समय राजा जुन्गा का अधिपत्य था। देव जुन्गा के चार विश्वास पात्र देव खूंद भौंटी, भलिहार, परिहार और छिब्बर थे। इन जनपदों में लोग देव शिरगुल की अनिष्टकारी प्रवितियों से बहुत दुखी थे। लोक देवता परिहार नें देव शिरगुल से टक्कर लेनी चाही परंतु उसे द्वंद युद्ध में परास्त होना पड़ा। देव जुन्गा के परामर्श से देव परिहार ने जनपद की रक्षा हेतु कश्मीर के शक्तिशाली देव बृजेश्वर (बिजु देव) से प्रार्थना कीछ बृजेश्वर देव ने सहायता का वचन दिया। फलस्वरूप शिरगुल देव और बृजेश्वर देव के मध्य घमासान युद्ध हुआ। शिरगुल देवता ने आक्रोश मे आकर लोहे के गोलों की ओलावृष्टी की। शिरगुल के इस आक्रमण से जुन्गा जनपद के लोग बहुत घबराए परन्तु बृजेश्वर देव नें अपनी चमतकारी शक्तियों का प्रयोग कर शिरगुल की ओलावृष्टी को आसमान में न केवल रोका अपितु शिरगुल पर प्रहार करते हुए उस पर आसमानी बिजली (बीज) का प्रहार किया।
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