जीने के लिए रोजी-रोटी चाहिए, केवल तारीफ ही काफी नहीं
भरथरी गायिका रेखा देवी जलक्षत्री ने बताई मन की व्यथा
छत्तीसगढ़ की जानी-मानी लोकगायिका रेखा देवी जलक्षत्री पारम्परिक लोकगीतों की उपेक्षा को लेकर चितिंत हैं। उनका मानना है कि नौसिखीए कलाकारों ने छोटी-छोटी मंडली बनाकर लोकगीतों की जगह फूहड़ गीतों को मंच में परोसना शुरू कर दिया है। सस्ती लोकप्रियता पाने की होड़ में आंचलिक गीतों का स्तर गिराने में कुछ ऐसे लोग भी शामिल हो गये हैं जिनका संगीत से दूर तक रिश्ता नहीं है। 'देशबन्धु' से मुलाकात में भरथरी गायिका रेखादेवी जलक्षत्री ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति को जीवंत बनाये रखने की बात कही।
ठेठ छत्तीसगढ़ी में उन्होंने कहा कि 'नंदावत हे लोकगीत चेत करव गा'। जब तक सांस हे तब तक राजा भरथरी के लोकगाथा सुनाय बर कमी नई करंव। पांच वर्ष की उम्र से अपने दादा स्व. मेहतर प्रसाद बैद को भरथरी गीत गाते सुनकर उन्हीं की तरह बनने की इच्छा रखने वाली रेखादेवी बताती हैं कि दस वर्ष की उम्र से लोकगीत गा रही हूं। आकाशवाणी रायपुर में विगत वर्षों से लोक कलाकार के रूप में मैंने कई लोकगीत गाये। आज भी मेरे द्वारा गाये जाने वाले गीत श्रोता खूब पसंद करते हैं। खासकर के राजा भरथरी के किस्सा जब रेडियो पर प्रसारित होता है तो बड़े ध्यान से ना सिर्फ गांव-देहात बल्कि शहर में भी श्रोताओं का एक बड़ा वर्ग दिलचस्पी के साथ आनंद उठाता है।
भरथरी गायन के माध्यम से देश-विदेश में धूम मचाने वाली इस लोकगायिका को इलाहाबाद सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा जर्मनी में कार्यक्रम प्रस्तुत करने का मौका मिला। अपनी उपलब्धि के बारे में रेखादेवी जलक्षत्री ने बताया कि पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा के हाथों उदयपुर में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया। छत्तीसगढ़ में प्राय: सभी स्थानों पर भरथरी गीत मैंने प्रस्तुत किया है। वैसे तो भरथरी लोकगाथा का गढ़ उौन है, पर छत्तीसगढ़ में काफी समय से राजा भरथरी की लोकगाथा को मैं विभिन्न मैचों के माध्यम से प्रस्तुत करते आ रही हूं।
मांढ़र निवासी रेखादेवी जलक्षत्री 'महाकालेश्वर भरथरी पार्टी' के माध्यम से आठ सदस्यीय टोली के साथ छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में विभिन्न अवसरों पर कार्यक्रम देने जाती हैं। चाहे शादी-ब्याह का समय हो या छट्ठी का न्यौता, लोग हमें बुलाते हैं। राजा भरथरी के लोकगाथा को हावभाव के साथ पेश करना आसान बात नहीं है। तभी तो केवल गिने-चुने कलाकार ही भरथरी गायन में सफल होते हैं। रेखादेवी जलक्षत्री का मानना है कि पारम्परिक लोकगीतों से माटी की महक आती है। ग्रामीण जनजीवन में रचे-बसे लोकगीत किसी परिचय के मोहताज नहीं। यही वजह है कि वो जब कार्यक्रम देने जाती हैं तो राजा भरथरी के जीवन से जुड़े विविध प्रसंगों को प्रस्तुत करती हैं। जन्म, विवाह, राजा भरथरी के बैराग, वियोग प्रसंग, भिक्षा प्रसंग नौ खंड में है। रोचक प्रसंगों को लोग घंटों सुनना पसंद करते हैं। संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ के आमंत्रण पर 'आकार' 2009 में नवोदित कलाकारों को प्रशिक्षण दे रहीं रेखा देवी जलक्षत्री ने बताया कि इस समय 12 शिष्यों को वे प्रशिक्षण दे रही हैं, जिनमें से तीन प्रशिक्षार्थी काफी कुछ सीख गये हैं। नयी पीढ़ी तक अपनी इस कला को जीवंत रखने का प्रयास कर रही हूं। पीड़ा इस बात की है कि पुराने कलाकारों को शासन के तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही। पहले के कलाकार कम पढ़े-लिखे हैं पर कला उनमें कूट-कूट कर भरी है। ऐसे में इन कला गुरूओं को प्रशिक्षक बतौर नौकरी मिल जाये तो बात बन जाएगी। जीने के लिए रोजी-रोटी चाहिए, केवल तारीफ ही काफी नहीं।
छत्तीसगढ़ की जानी-मानी लोकगायिका रेखा देवी जलक्षत्री पारम्परिक लोकगीतों की उपेक्षा को लेकर चितिंत हैं। उनका मानना है कि नौसिखीए कलाकारों ने छोटी-छोटी मंडली बनाकर लोकगीतों की जगह फूहड़ गीतों को मंच में परोसना शुरू कर दिया है। सस्ती लोकप्रियता पाने की होड़ में आंचलिक गीतों का स्तर गिराने में कुछ ऐसे लोग भी शामिल हो गये हैं जिनका संगीत से दूर तक रिश्ता नहीं है। 'देशबन्धु' से मुलाकात में भरथरी गायिका रेखादेवी जलक्षत्री ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति को जीवंत बनाये रखने की बात कही।
ठेठ छत्तीसगढ़ी में उन्होंने कहा कि 'नंदावत हे लोकगीत चेत करव गा'। जब तक सांस हे तब तक राजा भरथरी के लोकगाथा सुनाय बर कमी नई करंव। पांच वर्ष की उम्र से अपने दादा स्व. मेहतर प्रसाद बैद को भरथरी गीत गाते सुनकर उन्हीं की तरह बनने की इच्छा रखने वाली रेखादेवी बताती हैं कि दस वर्ष की उम्र से लोकगीत गा रही हूं। आकाशवाणी रायपुर में विगत वर्षों से लोक कलाकार के रूप में मैंने कई लोकगीत गाये। आज भी मेरे द्वारा गाये जाने वाले गीत श्रोता खूब पसंद करते हैं। खासकर के राजा भरथरी के किस्सा जब रेडियो पर प्रसारित होता है तो बड़े ध्यान से ना सिर्फ गांव-देहात बल्कि शहर में भी श्रोताओं का एक बड़ा वर्ग दिलचस्पी के साथ आनंद उठाता है।
भरथरी गायन के माध्यम से देश-विदेश में धूम मचाने वाली इस लोकगायिका को इलाहाबाद सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा जर्मनी में कार्यक्रम प्रस्तुत करने का मौका मिला। अपनी उपलब्धि के बारे में रेखादेवी जलक्षत्री ने बताया कि पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा के हाथों उदयपुर में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया। छत्तीसगढ़ में प्राय: सभी स्थानों पर भरथरी गीत मैंने प्रस्तुत किया है। वैसे तो भरथरी लोकगाथा का गढ़ उौन है, पर छत्तीसगढ़ में काफी समय से राजा भरथरी की लोकगाथा को मैं विभिन्न मैचों के माध्यम से प्रस्तुत करते आ रही हूं।
मांढ़र निवासी रेखादेवी जलक्षत्री 'महाकालेश्वर भरथरी पार्टी' के माध्यम से आठ सदस्यीय टोली के साथ छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में विभिन्न अवसरों पर कार्यक्रम देने जाती हैं। चाहे शादी-ब्याह का समय हो या छट्ठी का न्यौता, लोग हमें बुलाते हैं। राजा भरथरी के लोकगाथा को हावभाव के साथ पेश करना आसान बात नहीं है। तभी तो केवल गिने-चुने कलाकार ही भरथरी गायन में सफल होते हैं। रेखादेवी जलक्षत्री का मानना है कि पारम्परिक लोकगीतों से माटी की महक आती है। ग्रामीण जनजीवन में रचे-बसे लोकगीत किसी परिचय के मोहताज नहीं। यही वजह है कि वो जब कार्यक्रम देने जाती हैं तो राजा भरथरी के जीवन से जुड़े विविध प्रसंगों को प्रस्तुत करती हैं। जन्म, विवाह, राजा भरथरी के बैराग, वियोग प्रसंग, भिक्षा प्रसंग नौ खंड में है। रोचक प्रसंगों को लोग घंटों सुनना पसंद करते हैं। संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ के आमंत्रण पर 'आकार' 2009 में नवोदित कलाकारों को प्रशिक्षण दे रहीं रेखा देवी जलक्षत्री ने बताया कि इस समय 12 शिष्यों को वे प्रशिक्षण दे रही हैं, जिनमें से तीन प्रशिक्षार्थी काफी कुछ सीख गये हैं। नयी पीढ़ी तक अपनी इस कला को जीवंत रखने का प्रयास कर रही हूं। पीड़ा इस बात की है कि पुराने कलाकारों को शासन के तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही। पहले के कलाकार कम पढ़े-लिखे हैं पर कला उनमें कूट-कूट कर भरी है। ऐसे में इन कला गुरूओं को प्रशिक्षक बतौर नौकरी मिल जाये तो बात बन जाएगी। जीने के लिए रोजी-रोटी चाहिए, केवल तारीफ ही काफी नहीं।
कोई टिप्पणी नहीं:
धन्यवाद