छत्तीसगढ़ी लोक गीतों में-नारी
डा. पालेश्वर शर्मा
नारी सभी युगों में पूज्यनीय रही हंै। सचमुच नारी इतनी महान है यह व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं। यह हमें छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोकगीत के माध्यम से पता चलता है। केवल इन गीतों को देखने मात्र से ही नारी की महिमा का सहज अंदाजा लग जाता है। नारी सभी युगों में पूज्यनीय रही हंै। सचमुच नारी इतनी महान है यह व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं। यह हमें छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोकगीत के माध्यम से पता चलता है। केवल इन गीतों को देखने मात्र से ही नारी की महिमा का सहज अंदाजा लग जाता है।वास्तव में भारतीय नारी लक्ष्मी, अन्नपूर्णा और सरस्वती है, किन्तु छत्तीसगढ़ की बेटी-जंगल की धियरी, धरती की पुत्री, अपने आंगन की तुलसी, मां के आकाश की चांदनी, पिता के प्यार की दुलारी है। गांव की ग्राम्या, वन प्रदेश की वन-बाला, बपचन की बेटी, यौवन की वधु, प्रौढ़ता की माता, वृद्धावस्था की दादी- चंदा- चांदनी है। जीवन की धवल-धूसर पगडंडी ऊबड़ खाबड़ है, नारी करूणामयी, वात्सल्यमयी तो है, फिर भी उसका आंचल आसुओं से गीला है, इसीलिए वह रूदन करती गाती है- पइयां परत हौं मैं चंदा सुरुज के...के मोला तिरिया जनम झनि देय।। तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर...रे सुअना जहां पठोए तहं जाय।। नारी की सबसे बड़ी परीक्षा उसका मातृत्व है- मां नहीं बनने पर वह कलंक लिए रहती है, बंध्या होना उसकी बड़ी पीड़ा है- तिली बरन तोर तिलरी दिखत हे... गहूं बरन तोर मांगे हो। गोमती वरन तोर देंह दिखत हे...कइसे के परे हस बांझे हो। विवाह होते ही बिटिया अपनी ससुराल में बहू बन जाती है। चुटकी भर सिंदूर पाकर बेटी पराई हो जाती है, उसका गोत्र-परिवार बदल जाता है- तिरिया जनम के पोथी म दुई पान...मइके ससुरे के बीच म पातर प्रान। ललनाएं गा उठती हैं- बिटिया जनम बाबा झांझर कोखिया...नित दिन घटय परिवारे हो। बेटवा जनम बाबा निर्मल कोखिया...नित दिन बाढ़य परिवारे हो। विवाहिता नारियों के जीवन में पुत्र जन्म सबसे बड़ा वरदान है, गर्भ धारण करते ही सोहर गीतों की मंगल ध्वनिवास्तव में भारतीय नारी लक्ष्मी, अन्नपूर्णा और सरस्वती है, किन्तु छत्तीसगढ़ की बेटी-जंगल की धियरी, धरती की पुत्री, अपने आंगन की तुलसी, मां के आकाश की चांदनी, पिता के प्यार की दुलारी है। गांव की ग्राम्या, वन प्रदेश की वन-बाला, बपचन की बेटी, यौवन की वधवास्तव में भारतीय नारी लक्ष्मी, अन्नपूर्णा और सरस्वती है, किन्तु छत्तीसगढ़ की बेटी-जंगल की धियरी, धरती की पुत्री, अपने आंगन की तुलसी, मां के आकाश की चांदनी, पिता के प्यार की दुलारी है। गांव की ग्राम्या, वन प्रदेश की वन-बाला, बप्वास्तव में भारतीय नारी लक्ष्मी, अन्नपूर्णा और सरस्वती है, किन्तु छत्तीसगढ़ की बेटी-जंगल की धियरी, धरती की पुत्री, अपने आंगन की तुलसी, मां के आकाश की चांदनी, पिता के प्यार की दुलारी है। गांव की ग्राम्या, वन प्रदेश की वन-बाला, बपचन की बेटी, यौवन की वधु, प्रौढ़ता की माता, वृद्धावस्था की दादी- चंदा- चांदनी है। जीवन की धवल-धूसर पगडंडी ऊबड़ खाबड़ है, नारी करूणामयी, वात्सल्यमयी तो है, फिर भी उसका आंचल आसुओं से गीला है, इसीलिए वह रूदन करती गाती है- पइयां परत हौं मैं चंदा सुरुज के...के मोला तिरिया जनम झनि देय।। तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर...रे सुअना जहां पठोए तहं जाय।। नारी की सबसे बड़ी परीक्षा उसका मातृत्व है- मां नहीं बनने पर वह कलंक लिए रहती है, बंध्या होना उसकी बड़ी पीड़ा है- तिली बरन तोर तिलरी दिखत हे... गहूं बरन तोर मांगे हो। गोमती वरन तोर देंह दिखत हे...कइसे के परे हस बांझे हो। विवाह होते ही बिटिया अपनी ससुराल में बहू बन जाती है। चुटकी भर सिंदूर पाकर बेटी पराई हो जाती है, उसका गोत्र-परिवार बदल जाता है- तिरिया जनम के पोथी म दुई पान...मइके ससुरे के बीच म पातर प्रान। ललनाएं गा उठती हैं- बिटिया जनम बाबा झांझर कोखिया...नित दिन घटय परिवारे हो। बेटवा जनम बाबा निर्मल कोखिया...नित दिन बाढ़य परिवारे हो। विवाहिता नारियों के जीवन में पुत्र जन्म सबसे बड़ा वरदान है, गर्भ धारण करत्वास्तव में भारतीय नारी लक्ष्मी, अन्नपूर्णा और सरस्वती है, किन्तु छत्तीसगढ़ की बेटी-जंगल की धियरी, धरती की पुत्री, अपने आंगन की तुलसी, मां के आकाश की चांदनी, पिता के प्यार की दुलारी है। गांव की ग्राम्या, वन प्रदेश की वन-बाला, बपचन की बेटी, यौवन की वधु, प्रौढ़ता की माता, वृद्धावस्था की दादी- चंदा- चांदनी है। जीवन की धवल-धूसर पगडंडी ऊबड़ खाबड़ है, नारी करूणामयी, वात्सल्यमयी तो है, फिर भी उसका आंचल आसुओं से गीला है, इसीलिए वह रूदन करती गाती है- पइयां परत हौं मैं चंदा सुरुज के...के मोला तिरिया जनम झनि देय।। तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर...रे सुअना जहां पठोए तहं जाय।। नारी की सबसे बड़ी परीक्षा उसका मातृत्व है- मां नहीं बनने पर वह कलंक लिए रहती है, बंध्या होना उसकी बड़ी पीड़ा है- तिली बरन तोर तिलरी दिखत हे... गहूं बरन तोर मांगे हो। गोमती वरन तोर देंह दिखत हे...कइसे के परे हस बांझे हो। विवाह होते ही बिटिया अपनी ससुराल में बहू बन जाती है। चुटकी भर सिंदूर पाकर बेटी पराई हो जाती है, उसका गोत्र-परिवार बदल जाता है- तिरिया जनम के पोथी म दुई पान...मइके ससुरे के बीच म पातर प्रान। ललनाएं गा उठती हैं- बिटिया जनम बाबा झांझर कोखिया...नित दिन घटय परिवारे हो। बेटवा जनम बाबा निर्मल कोखिया...नित दिन बाढ़य परिवारे हो। विवाहिता नारियों के जीवन में पुत्र जन्म सबसे बड़ा वरदान है, गर्भ धारण करते ही सोहर गीतों की मंगल ध्वनि घर, आंगन में गूंजने लगती है। चंदन पालुकी कइसे चढ़िहौं अपने ससुर बिना हो... ललना... निहुर के पैयां कइसे परिहौं अपने ससुर बिना हो... जंघिया जोरी के कइसे बइठिहौं अपने जेठानी बिना हो... ललना... ताते रसोइया कइसे रंधिहौं अपने देवर बिना हो... नयन काजल कइसे आंजिहौं त अपने होरिला बिना हो... सोहर में गर्भधारण से पुत्र जन्म तक की अवस्था देखिये- पहिली महीना
June 7, 2013, 3:57 pm
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