नौटंकी
नौटंकी
उत्तर प्रदेश का लुप्तप्राय लोकनाट्य है। लगभग दो सौ वर्षों से सामाजिक
प्रतिरोध का माध्यम रहे, इस नाट्यरूप के बारे में इन्टरनेट या अन्य
इलेक्ट्रौनिक माध्यमों के द्वारा जो भ्रष्ट सामग्री परोसी जा रही है, वह
किसी भी सभ्य कहलाने वाले समाज के लिये शर्मनाक है। कभी –कभी तो यह
सुनियोजित लगता है। दरअसल, नौटंकी के अधिकांश कलाकार(खासकर स्त्री पात्र)
‘बेड़िया’ समुदाय’ से या ‘डेरेदार मुसलमान’ हैं। ये दोनों
ही समुदाय अपने धार्मिक-सामाजिक व्यवस्था में दलित हैं और अब तक अनागरिक
भी। महज़ संयोग है कि एक बेड़नी( गुलाब बाई) को पदमश्री मिला। आप ऐसी
पदमश्री हैं कि आपके जाने के बाद कानपुर में आपकी स्मृति में एक कुआं भी
नहीं है। अब ले बलैया प्रो. विकिपीडिया और मास्टर यू ट्यूब का अंतर्जाल
देखिये....अश्लील, कामोत्तेजक, तवायफ़ों का नाच और भी ... रंपत हारामी, हाट
रंडी नाच ...यही कुछ है वहाँ नौटंकी के बारे में... दुनियाँ देख रही है?
देखें...!! जो था वही कहा। ...1857 की क्रान्ति, जालियाँवाला बाग, महात्मा
गांधी, सुभाष चन्द्र बोस की नौटंकियाँ... क्यों नहीं कहा? संस्कार अनुमति
नहीं देता, जभी तो पिछले वर्ष वाराणसी के गंगा महोत्सव में पंडित छन्नु लाल
मिश्रजी ने मंच का वहिष्कार करते हुए कहा कि जिस मंच पर कचोड़ी गली
वाले(विरहा गायकों के लिये) गाएँगे, वहाँ मैं नहीं गाऊँगा। अब लीजिये, गंगा
किनारे क्या संकट? भाई अंजुल भर जल छिरक देते, सब पवित्र। अब का करें, एक
विरहा गायक(राम कैलाश यादव) ने राज्य और केंद्र सरकार द्वारा दिये जाने
वाले कला जगत के सभी प्रतिष्ठित सम्मान को प्राप्त कर उत्तर प्रदेश की
प्रतिष्ठा को बढ़ाया(जिसमें ‘कालिदास सम्मान’ भी शामिल है।) ...चलिये
‘बेड़िया’ और ‘डेरेदार मुसलमान’ समाज के अधिकांश लोगों को अब तक नागरिकता
प्रमाण पत्र ही नहीं है तो, आप किसी राजनीतिक पार्टी के ऐजेंडे मे कहाँ
होंगे। हम सभी जानते हैं कि ‘कथक’ जैसे नृत्य की बुनियाद कहाँ है? आज कोई
कथक के ‘क’ पर टिप्पणी करके देंखे। तीनों लोक खराब कर देंगे। नौटंकी… की
कला है। तब भी उत्तम प्रदेश की पहचान है भैया!!
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