inki aankhon main

दिसंबर 31, 2011
इन आँखों से पूछो की नया साल क्या है इसने पूछो  की इनके हाथो मैं क्या है सपने जो इनके पलकों पर जम गए है हर बरसात मैं बुँदे वो भी बह...
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खंडहर

दिसंबर 30, 2011
खंडहर  जो तेरा है सच उसे बाहर  निकाल मुक्त कर उस पिंजरे से होने दे युद्ध सब्द और अर्थ में मत सोच की कोण सा प्रलय आयेगा कुछ खंडहर ...
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दिसंबर 26, 2011
उस रात तेरी वो बात मुझे याद है जब तुने रच डाली थी मुझ पर कविता प्रकृति के समस्त उपादानों के साथ कर दिया था मुझे सम्मिलित जिस दिन तुने क...
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"द्वन्द"

दिसंबर 25, 2011
"द्वन्द" जब भी तुझमे खोजता हूँ अपने भीतर के प्रश्नों को तो तेरा  मुझमे होना एक द्वन्द सा लगता है तनाव की रेखा बन जाती है तेर...
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"रात "

दिसंबर 25, 2011
"रात " इस रात वो बात फिर से न हो की फिर कहीं कोई सुबह ठहर जाए इस रात वो आइना न देखा हो किसी ने की फिर किसी का चेहरा उसमे यूँ ...
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"वो "

दिसंबर 25, 2011
"वो " उसकी चुनरी से वो धुप छनकर मुझ पर पड़ती थी उसने अपने सपनों को काटकर मेरे सपनों को बुना उसका स्नेह इस दुनिया के सागरों से...
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दिसंबर 25, 2011
हर बार जो चाहत तुम्हारी मेरे लिए और भी करीब होने का एहसास दिलाती थी एक पल के लिए तुम रूकती तो उससे आगे छह बन जाती कुछ ख्वाबो का खेल है ...
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दिसंबर 25, 2011
एक दख्त सेहर मैं पड़ा था एक तुझ पर पड़ा मेरा एक ख़ामोशी सेहर मैं पसरी थी एक ख़ामोशी मुझमे पसरी थी एक नाव नदी मैं फसी थी एक नाव मेरे भीतर...
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वो तुम्हारा चेहरा

दिसंबर 25, 2011
वो तुम्हारा चेहरा जो पिछली बार छुट गया था मुलाकात में कुछ सपने जो कल देखे थे टूट चुके थे आधी रात में वो तुम्हारा मुस्कराना शरमा के पल...
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दिसंबर 25, 2011
सीर पर उसके बोझ की गठरी हाथ उसके हवा मैं लहरते योवन की देहलीज पर उसकी कमर नव दुल्हन से उसके पाँव मुस्कान ठहरती उसके चेहरे पर ज्यों सावन...
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दिसंबर 25, 2011
एक खुबसूरत शाम फेलाहे खडी है बाँहें तारो की चाय समेटने को और कहने को हाँ सच मैं यह ज़िन्दगी की खुबसूरत शाम है २. उस रेट के आखिरी कण ...
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दिसंबर 25, 2011
"केनवास " आज केनवास पर एक चित्र उभर आया माथे पर प्रहार का निशाँ आँखों मैं जमा हुआ दर्द तन पर लाचारी और बेबसी के मंत्र हृदय...
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" हाशिया "

दिसंबर 25, 2011
" हाशिया "   सड़कों पर फेकी वो लाशें किसकी है ? माथे पर उनके अभी भी खिचाव है खोफ का भयानक चेहरा  अभी भी उनकी आँखों से गया नहीं    उ...
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kuch kahi kuch unkahi...

अक्तूबर 19, 2011
कुछ कही कुछ अनकही सी बात रह जाती है  जब अपने होठो मैं बंद  कर लेता हु अपने अल्फाजो को  एक पल के लिए दिल से दिमाग  तक  पहुच जाते है विचार मेर...
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मई 04, 2011
समस्याए कहा खड़ी होती है जहा से हमारी आकांक्षाये जन्म लेती है ...अगर हमे खुद से सवालों के जवाब मिलने लग जाये तो हर मनुष्य प्रसन्न रहेगा मगर...
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मई 04, 2011
क्या पिछली बार की तरह इस बार भी तुम यु ही चुप रहोगी.. हर बार तुम्हारे होठो पर कुछ thehar  सा जाता है.. हर बार तुम्हारी पलकों से कुछ फिसलत...
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अप्रैल 28, 2011
वो उस दिन वो उस दिन सब कुछ बदल गया था वो तुम्हारा मुझ मैं मिल जाना सब कुछ मिल जाने जेसा ...
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अप्रैल 28, 2011
कॉलेज और अतीत कॉलेज का वो पहला दिन मन मैं कुछ ख्वाब सजाए । सपनों को पलकों पर बिठाए मेने रखा कदम । देख कर...
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