कॉलेज और अतीत


कॉलेज का वो पहला दिन मन मैं कुछ ख्वाब सजाए
सपनों को पलकों पर बिठाए मेने रखा कदम
देख कर अद्भुत संसार मेरा मन कुछ भयभीत हुआ
कुछ पल मैं ही मेरे मन को एहसास हुआ
यह तो था आगाज़ मेरे नए जीवन का ....

सपनों की उठापटक में समय का पता ही नहीं चला
कब स्कूल का वो अल्हड़पन मुझसे दूर हो गया
कब मेरे माता पिता के सपनों ने आकर लेना सुरु कर दिया
कब मित्रो ने मुझे बेगाना समझना सुरु कर दिया
कब समय रथ के पहिये पर स्वर हुआ पता ही नहीं चला

कॉलेज में भी समय कुछ यु ही तेज़ी से गुज़रा
यहाँ का खुला वातावरण मेरे व्यक्तित्व में जेसे समां सा गया
वो नाटक का मेरे भीतर बस जाना
वो लाल दीवारों की गलियों में खो जाना
कभी चार तो अब शाम के आगोश में घर पर दस्तक देना
अब तक तो घर में मेरा इंतज़ार भी कम होने लगा था
सायद यही मेरे बड़े होने का सबब था
सुना था की जब बच्चा रो रहा हो
और साथ के कमरे से चुप करने कोई आये
तो समझ जाना चैये बच्चा बड़ा हो गया
सायद यही हो रहा था

खेर कुछ इसी कशमोकश में एक साल गुज़ारा
कुछ मेरा व्यक्तित्वा भी परिपक्व हुआ
अब तो में घर से काफी दूर चूका था
मेरे मन का और आस पास का संसार
जेसे काफी बदल गया था
मेरा घर जेसे बदल रहा था
कुछ था जो मेरे घर और इस कॉलेज में प्रतिद्वंदिता कर रहा था
और आखिर कॉलेज जीता

तीसरा साल होने तक तो में घर से काफी दूर चूका था
मेरे सपने भी बड़े हो गए थे
हा आर्थिक विकलांगता ने मुझे जरुर रोका ,पर मेरे होसले को नहीं
यह तीन साल मेने खुद को दिए
खुद से लड़ा ,खुद में जिया
कभी समाये से आगे तो कभी खुद से भी आगे

सब कुछ तो दिया इस कॉलेज ने
प्यार को वो पहला एहसास
वो दोस्ती में डूब जाना
वो रातो का सुदागर बन कैम्पस में घुमाना
वो रातो को सडको पर चिल्लाना
वो दीवारों को पोस्टर से धक् देना
वो कैंटीन में मोहम्मद रफ़ी बन जाना
वो मेट्रो पर रात भर वार्ता करना
बसों को आते जाते देख उनसे आपनो की तुलना करना

कॉलेज और कैम्पस ने जेसे बांध सा दिया
यह किलोमीटर आपकी जिंदगी कब तये कर देता है पता ही नहीं चला
यह दूरिय कब आपको बड़ा कर देती है पता ही नहीं चला
आपका आतीत जब भवर बन कर उसी क्लास में उड़ता है
तो अनायास ही चेहरे पर खुसी जाती है

सब कुछ वसंत के मौसम सा नया
सब कुछ कॉलेज
सब कुछ नए में अतीत को देख खुश होना
किय्ना सुखद है यहाँ रहना

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धन्यवाद