जागृति एक हल आज फिर लोकतंत्र की जित हुई आज एक बार फिर मनुष्य की अकक्न्षा की जित हुई परन्तु किस सत्य से हम भाग रहे है समस्याए उत्पन होती ही क्यों है ? आखिर यह सभी उत्पन भी मनुष्य की एक इकाई से ही होती है ओउर हम सुब एक इकाई ही तो है भगत सिंग महात्मा गाँधी आंबेडकर या अन्ना हजारे जेसे जाने कितनी ही शक्तियों के या यु कहा जाये की हमारी आस्था / आकांक्षा की किरण के आगे बढ़ने पर ही हम कदम बढ़ाते है जबकि आस्था तो हमेशा अंधी ही होती है सच मैं मनुष्य कितना अस्पस्ट, अनंतहीन अकांक्षाओ को लेकर जीता है एक पूर्ति मैं न जाने कितनी ही अपुर्तिया छिपीं होती है सत्य को क्यों हम आस्था की लाटी से घायल कर देते है आखिर कम समय के जीवन मैं क्यों हम स्वयम पर क्यों नि जीते क्यों हम शक्तियों , आस्थाओं पर जीते है हर जित मैं हार छिपी होती है यह जित तो केवल अन्ना हजारे की है उनकी दृढ शक्तियों की जित है हम सब तो केवल अपनी हर पर पर्दा डाल रहे है आखिर है तो हम व्ही मनुष्य जो अब भी भीतर के परिवर्तन के लिए " कल्कि " जेसे अवतार की प्रतीक्षा करते है हम जीवित है इसलिए हमने शास्त्रों को पढ़ा हम कायनात के भयावह मंज़र से बचने के लिए पुण्य का ग्रन्थ रचते जाते है अवतार का इंतज़ार आखिर कब तक होता रहेगा सदिया बीती मनुष्य अब भी धुंधली तस्वीर की भांति दिवार पर टंगा है की आखिर कोई तो इस तस्वीर को सीधा कर इसे साफ़ करेगा मनुष्य की दूषित चित्रवृत्यो का दोषी स्वयम मनुष्य है अवतार उनके भीतर ही है जिस वक्त हम स्वयम से जाग जाये वेह अवतार भी जाग जायेगा फिर हर व्यक्ति उस किरण की तरह होगा जो अन्धकार को चुनोती देगा सुप्तावस्था से जागृत होना ही सार्थक है
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