समाज का हर अंग महत्वपूण है चाहे वो समाज का निचला तबका हो या उच्चा वर्ग ....भारत को बहुभासिकता बहु जातिवाद बहु सांस्कृतिक वाला समाज का दर्जा मिला है परन्तु जहा बहु है वही समस्या है जहा फलक बड़ा है वही विचारों का बिखराव भी है ... जहा अब भी आस्था के कारन लाखो लोग पूरी ज़िन्दगी अभाव मैं गुज़र देते है जहा अब भी लोग सिर्फ सपना इसलिए नहीं देखना पसंद करते की वो कही ज्यादा बड़ा न हो जाये .....केसी है यह वास्तविकता ...हम पश्चिमी सभ्यता की तरफ भागते है परन्तु हमारी सभ्यता इससे कही जायदा संगठित और बड़ी है बहुत कुछ है जो हमने नहीं जाना जिसे हम अन्च्चुए है फिर भी बहार की तरफ भागते है ॥ जो लोग अपने को पश्चिमी सभ्यता को अपनाते हुए किलकरी मरते है दरसल वो तो भारतीय और पश्चिमी सभ्यता के मध्य लटके है ..भले ही वो आधुनिकत का दावा करे परन्तु यह मात्र मरीचिका है ... आखिर हम आधुनिक हुए ही कब है ? हम भ्रस्ताचार करते है फिर कहते है गलत है आरक्षण पते है फिर कहते है जातिवाद गलत है यह दोहरा मापदंड क्या आधुनिकता की दें है ? हजारो सालो का लम्बा कालक्रम ..कही भी हमे कुछ सिखने को नि देता या यु कहे की हम सीखना ही नि चाहते क्योकि हम तो मात्र उस पर भरोस करते है जो हो चूका है क्या होना चाहिए इसको हम सिध्जे तोर पर नकार देते है ..... जागो इस भारत को अभी भी हमारी जरुरत है उस अनछुए भारत को जानो जिसे आप जानना नहियो चाहते
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धन्यवाद