कल का अखबार पढ़ा एक खबर पढ़ कर बड़ा दुःख हुआ मध्य प्रदेश के एक जिले मैं अभी भी मंदिर के बाहर लिखा है यहाँ सुद्रो का आना मना है यह केसा आधुनिक भारत है एक तरफ प्रशासन का कहना की वेह मंदिर निजी ज़मीं पर होने के कारन वो १५ सालो से इसे हटाने का पर्यास कर रहे है परन्तु वो बेबस है यह बेबसी उस बोर्ड को लेकर है या व्यवस्था के उस अंधेपन को जिसके भीतर बाबा साहेब आंबेडकर के विचार कही खो गए है ..एक तरफ हम उनका १२० जन्मतिथि मन रहे है वाही उसी वक़्त ऐसी खबर हमे आधुनिका से कोसो दूर फेक आती है यह केवल खबर नहीं तमाचा है उस समाज पर जो आधुनिकता का चस्मा लगाये केवल अपने सामने सिर्फ अचा देखना पसंद करते है सत्य से कोसो दूर खड़े है ...हमे यह देखना और समझना होगा की केवल सभा मैं विचारो को पढ़ देने मात्र से समाज नही बदलता हमारे आसपास ऐसे कई तथ्य बिखरे पड़े है जिन्हें समेत कर एक लड़ाई लड़नी होगी हमेसा जब तक हम जिन्दा है ... हम केवल सक्तियो के भरोसे भेथे रहते है आपके विचार कहा है आपकी क्रांति कहा है आपने किस सत्य को तलाशा ....वाही पुराणी पंक्ति हम कहते है देश ने हमारे लिए क्या किया अरे हमने देश के लिए क्या किया ?? समाज मैं बेठे है तो सम्माज पर दोषारोपण घर मैं बेठे है तो बहार दोषारोपण आखिर क्या करते है हम..ऐसी खबरों को पढ़कर भी क्या हमारा समाज क्जस्श्मा उतर कर नि देख सकता की आधुनिकता कहा है ....

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