अंतिम स्वप्न
दर लगता है अंतिम स्वप्न से
जो हकीकत का
देहलीज़ पर इंतज़ार करती है
वो मेरा साक्षात्कार न करा दे
जीवन के अनसुलझे सत्य से
यह स्वप्न भायावेह है
छूट रहा था हाथ इसमें तुम्हारा मुझसे
दब रही थी श्वास मेरी मेरी
समय के रथ के नीचे
मैं तुम्हे खो रहा था अंतिम स्वप्न मैं
यह स्वप्न थी अंतिम प्रहार का
एक अजीब दर थ
क्योकि जनता था सुबह का स्वप्न
कही सत्य का चादर न ओढ़ ले ..
कोई टिप्पणी नहीं:
धन्यवाद