कभी तो एक रात मेने उनके हाथो से समय को युही सरकते हुए देखा हर रात वो युही हाँथ खुला छोड़ देते थे .. उनके घर के सामने एक वृक्ष था बड़ा सा ... देखता रहता था उसके जीवन लीला को .. ज़िन्दगी की उधेड़ बुन मैं उसका सब कुछ खत्म हो गया .. रह गया वो वृक्ष उस आदमी की गाथा सुनाने को .. समय से लड़ता था वृक्ष हमेशा. तभी वेह आज अकेला खड़ा है .. उसके अंग और पत्ते भी विदाई देने लगे है .. घर के चोखट पर जो गाय बंधी थी अब तो उसने भी अपना परिवार बड़ा लिया. समय सब कुछ बदल देता है .. वाही गाँव के दूर किनारे पैर खाक्कं चाचा का घर था .. हमेसा एक बेंत लेकर पूरी ज़िन्दगी को आते और जाते देखा .. वेह भी थे अकेले उस बरगद के वृक्ष की तरह .. गाव ने सब कुछ बदला अपने संस्कृति से अपने जीवन तक को नि बदले तो वृक्ष और वृद्ध व्यक्ति .. उसने देखा था .. कितनी हीओ कन्याओ के विवाह और गोने की बेला को देखा था बछो की किलकारियों को देखा था किसानो को पसीने से आनाज उगाते हुए .. देखा था कुने पैर माँ को पानी लेट हुए .. देखा था गाची की छाँव पैर मचान की ठंडक देखा था नंगे पाँव धरा को चुमते हुए देखा था छप्पर के घरो से पानी के निकलने का दुस्साहस .. देखा था आंच पैर प्यार की रोटी को पकते हुए देखा था आम के वृक्षों को गले लगते हुए .. देखा था आंसुओ का मिलन यहाँ पर 4 सुना था खुशियों पेर सुरों का संगम देखा था मातम पैर अपनो का विलाप .. देखा था नदी का अपनी सीमा के पार के बाद का तांडव देखा था पथराई आँखों से उन वृधो की आँखों मैं अपने के आने का इंतज़ार अब भी देखता हु खेत इन्जात करते है किसी के उस पैर चलने का न जाने कितने सालो से वो प्यासा है प्यार का अब तो सूरज की किरणे भी रास्ता बदल लेतिहाई .. अब तो हवा भी उपर से निकल जाती है .. अब समय चिढ़ता है इस गानको इन वृधो फिरर भी सब जिन्दा है कभी तो यह गाँव दुबारा मुस्कराएगा ..
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