खेत वो दूर दूर तक फ़ले खेत एक दुसरे से गले मिलते पिली चादर ओढ़े रिश्तो का एक मेला सा


धुप की पहली आहात


वो उतरती आसमा से ज़मी पर


सोते हुए भँवरे का


लालिमा को निहारना



वो दूर मचान पर लेता किसान


कु कु कु करती चक्की


वो औंधी गीली मिटटी की सुगंध


वो लहराते हुए हाथ



जहा तक देखो


कई परवारो के संगम सा


कई नदियों के मेल सा


किसी के आशाव के बोझ टेल


लहरा रहे है यह रूहानी खेत ...

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