अँधेरा

अँधेरे की आहात मैं
हर पल सोता है
तो कभी रोशन साये मैं
जग भी रोता है

अँधेरे सावन की रातो मैं
जुगनू की चमक
हंव के झोको का कुछ कहना
मन मैं कसक का उठाना
हमेशा रोशन जहा ही नहीं होता
अँधेरा भी जिवंत होता है

खिडकियों से झांकता
जब देखता हु दूर खड़े वृक्ष
को अँधेरे मैं दुबे
तो दर का एहसास हो
धीरे से चांदनी आँखों पर
प्रकाश डालती और कहती
महसूस करो इस अँधेरे को

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